एक तरफ ढोल प्रतियोगिता, एक तरफ पार्टी में गुटबाजी, आखिर कांग्रेस में चल क्या रहा...


झाबुआ से दिलीप सिंह

झाबुआ। मध्य प्रदेश कांग्रेस पार्टी में आदिवासी राजनीति के नाम पर कांग्रेस में सत्ता का सुख नहीं होने के बावजूद कांग्रेस की गुटीय राजनीति चरम पर है और आदिवासी गुटों में आपसी खिंचतान चली आ रही है। परिणाम में कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में लगातार कमजोर होती जा रही है और भाजपा को इसका फायदा मिलता जा रहा है।

हाल ही में मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद के द्वारा झाबुआ में भगोरिया हाट के पहले आदिवासी संस्कृति को संजोने के नाम पर ढोल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें झाबुआ और आलिराजपुर क्षेत्र के 100 से अधिक ढोल वादकों ने हिस्सा लिया और आदिवासी नृतक दल भी शामिल हुए। आयोजन के नाम पर जमकर राजनीति गुटबाजी हुई जिसमें कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व सांसद, विधायक कांतिलाल भूरिया और झाबुआ विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया को दूर रखा गया। जबकि कांतिलाल भूरिया आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष रह चुके है। लेकिन इस बार इस परिषद पर धार जिले से विधायक उमंग सिंगार अध्यक्ष है और उन्होनें आलिराजपुर के कांग्रेस नेता व कांतिलाल भूरिया के घोर विरोधी महेश पटेल को प्रदेश उपाध्यक्ष एवं झाबुआ में मथीयास भूरिया को प्रदेश सचिव बनाकर कांतिलाल भूरिया के खिलाफ खड़ा कर दिया है। इन दोनों नेताओं ने मिलकर झाबुआ में ढोल प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस प्रतियोगिता में कांग्रेस के पूर्व विधायक जेवियर मेडा ने भी हिस्सा लेकर यह जता दिया की वे भी कांतिलाल भूरिया के विरोध में है।

आलिराजपुर जिले में कांग्रेस पर पूरी तरह से पटेल परिवार का कब्जा है। महेश पटेल की पत्नी सेना पटेल जोबट से विधायक भी है वहीं झाबुआ जिले में कांतिलाल भूरिया गुट के पास झाबुआ से उनके पुत्र डॉ. विक्रांत भूरिया विधायक एवं थांदला से उनके समर्थक विरसिंग भूरिया विधायक है। कांतिलाल भूरिया की पकड़ जिले में उनकी उम्र की ढलान के साथ धीमी पड़ती जा रही है। भले ही कांग्रेस ने डॉ. विक्रांत भूरिया को आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया हो लेकिन डॉ. विक्रांत भूरिया के लिये झाबुआ में ही अपनी राजनैतिक साख दांव पर है तो ऐसे में पूरे देश व प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व को खड़ा करना उनके लिये बड़ी चुनौती है। जिले में ही उनको राजनैतिक क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में देश व प्रदेश में जब कि पांच साल तक सत्ता का सुख नहीं मिलने वाला है विपक्ष में रहना है और कांग्रेसीयों की आदत विपक्ष में रहने की नहीं है ऐसे समय में पार्टी की जिम्मेदारी निभाना बड़ा ही कठिन है।

ढोल प्रतियोगिता में झाबुआ और आलिराजपुर जिले से बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय को जुटाया गया और दिन भर झाबुआ में मजमा लगाया रखा। लेकिन इसमें कांतिलाल भूरिया और डॉ. विक्रांत भूरिया की अनुउपस्थिति खलने वाली रही और यह साफ संदेश गया की अब कांग्रेस पार्टी में इन नेताओं के स्थान पर नये नेता जगह बनाने लगे है। देखना होगा की आने वाले समय में मथीयास भूरिया और जेवियर मेडा जैसे आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया गुट के लिये कितनी चुनौतियां सामने खडा कर पाते है।
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