7 मार्च से शुरू होगा आदिवासी संस्कृति-परंपरा और रीति-रिवाजों का पर्व भगोरिया

✎ दिलीप सिंह

आदिवासी समुदाय का प्रसिद्ध पर्व भगोरिया एक विशेष महत्व रखता है, जिसे भगोरिया, भोंगरिया, हाट-बाजार, प्रणय पर्व, भगौर आदि नामों से भी जाना जाता है। यह पर्व मस्ती, खाना-पीना, नाच-गान, ढोल-मांदल की थाप, बांसुरी की धुन, और संस्कृति के रंगों से भरा होता है। भगोरिया का अर्थ है फसलों का पकना, टेसू फूलों की चमक, महुआ की महक, ताडी का नशा, और होली के रंगों का होना। यह पर्व आदिवासी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब वे अपनी संस्कृति, परंपराओं, और रीति-रिवाजों को मनाते है।

भगोरिया वस्तुत झाबुआ, आलीराजपुर, धार, बड़वानी आदि आदिवासी जिलों में भरने वाले साप्ताहिक हाट बाजारों को ही कहते है। होली के एक सप्ताह पूर्व भरने वाले हाट भगोरिया हाट कहलाते है। जबकि शिवरात्री पर लगने वाले हाट बाजार शिवरात्रीया हाट और उसके बाद लगने वाला हाट गुलालिया हाट कहलाते है। जबकि होली के बाद लगने वाले हाट बाजार उजाडिया हाट कहलाते है। क्योंकि होली के बाद आदिवासी फिर से काम की तलाश में पलायन कर जाते है और बाजारों में रौनक कम हो जाती है।

भगोरिया हाट बाजारों को लेकर आदिवासी समुदाय में खासा उत्साह रहता है। उन्हे साल भर भगोरिया हाट बाजारों का इंतजार रहता है। आदिवासी काम की तलाश में कितनी भी दूर गया हो भगोरिया हाट के पहले वह अपने गांव में लौटने लगते है। जैसे की पक्षी संध्या ढलते ही अपने घौसलों में लौटने लगते है। भगोरिया हाट बाजारों में जाने के लिये बच्चे, वृद्ध, युवक-युवती, महिला-पुरुष सभी उत्साहीत रहते है। भगोरिया हाट बाजारों के एक महिने पहले से ही आदिवासी वर्ग इसकी तैयारियां प्रारंभ कर देता है। बडे बूढे ढोल को कसने लगते है वाद्य यंत्रों की साफ सफाई की जाने लगती है, युवा बांसुरी पर धुन छेड़ते है तो युवतियां कपड़े, जेवर आदि श्रृंगार सामग्रीयां जुटाना प्रारंभ कर देती है।

भगोरिया हाट बाजारों को लेकर वैसे तो कई प्राचीन, पुरातन कहावते एवं किस्से कहानियां प्रचलित है। लेकिन आज का युवा शिक्षित आदिवासी समाज अपनी इन प्राचीन कहानियों, किस्सों को नहीं मानता है और वो इसे लेकर अपने-अपने तर्क देता है। हालांकी आज भी भगोरिया का पूराना स्वरूप कई बार उजागर होता दिखलाई पडता है।

प्राचीन समय में आदिवासी राजाओं का राज होता था तथा ये राजा अपने यहां पर मेले लगाते थे। भगोरिया हाट बाजारों में युवक व युवतियां अपने जीवन साथी का चयन भी करते थे और एक दूसरे को रंग लगाकर या फिर पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार भी करते थे। एक दूसरे की रंजामंदी के बाद देानों भगोरिया से ही भाग जाते थे। बाद में परिजनों के बीच समझौता होता था और फिर विवाह। इन्ही कारणों से इसे भगोरिया कहा जाने लगा। भग मतलब शिव व गौरी मतलब माता पार्वती। आदिवासी अपने भगवान को बाबा देव भी कहते है जोकि शिव से तालुक रखते है। इस कारण से भी इसका एक नाम भगोरिया माना जाने लगा। खेतों में गेहूं, चना, कपास आदि की फसलें जब लहलाह रही होती है तब आदिवासी खुशी मनाता है। रंग खेलता है इस कारण भी इसे भगोरिया कहा जाता है। अर्थात भगोरिया मनाने के कई व्यापक कारण है। कुल मिलाकर उत्साह, उमंग, मस्ती का यह त्यौहार होता है।

भगोरिया मेले क्या है, वस्तुत भगोरिया मेले आदिवासी गांवों में लगने वाले हाट बाजार ही होते है। जिनमें आपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आदिवासी समाज ढोल, मांदल, थाली की थाप पर बांसुरी की धुन छेड़ते युवा नाचते, गाते सम्मिलित होते है। नवयुवतियों के परिधान एवं उनका आकर्षक साज श्रृंगार देखते ही बनता है। भगोरिया हाट बाजारों में झूले, चक्करियों में झूलने का आंनद, बाजारों में शरबत, माजम, सेव, भजिया, पान की दुकाने, करतब दिखाने वाले आदि का लुफ्त लेने का मजा ही कुछ अलग होता है।

भगोरिया मेले में राजनीतिक लोग भी खुब शिरकत करते है इसका राजनीतिक लाभ भी उठाया जाता है। कांग्रेस भाजपा पार्टीयां भगोरिया हाट बाजारों में ढोल मांदल की गैरे, रैलियां भी निकाल कर अपना उस क्षेत्र में दबदबा जताती है। जिस पार्टी की गैर में जितने ज्यादा ढोल, मांदल उसकी उस क्षेत्र में उतनी ज्यादा पकड़ मजबूत मानी जाती है। ये राजनीतिक पार्टीयां इन ढोल पार्टीयों को धनराशि, इनके खाने पीने का इंतजाम भी करती है और साफा बंधाकर तडवी, बडवा, सरपंच का सम्मान भी किया जाता है। आज कल तो इन भगोरिया हाट बाजारों में प्रदेश के मंत्री, विधायक, मुख्यमंत्री तक शिरकत करते नजर आ जाते है। कई विदेशी सैलानी, देश व प्रदेश के पत्रकार व अन्य गणमान्य नागरिक भी भगोरिया देखने पहूंचते है।

प्रदेश सरकार ने भगोरिया हाट बाजारों की लोकप्रियता देखते हुए इसे भगोरिया पर्व का दर्जा दे दिया है। पर्यटन निगम भी अब भगोरिया में बहारी लोगों को लाने के लिये प्रयास करने लगा है, जिला प्रशासन भी भगोरिया हाट बाजारों में टेंट, माईक, जागरूकता शिविर आदि लगाने के अलावा जल पान की भी व्यवस्था करती है। बहार से आने वाले लोगों को यहां के दाल पानिये, ताडी की महक भी आकर्षित करती है।

भगोरिया हाट बाजार जहां हंसी खुशी का त्यौहार माना जाने लगा है वहीं कई मर्तबा यहां पुरानी रंजिश के चलते जब दो आदिवासी गुट आमने सामने आ जाते है तब विवाद की स्थति बन जाती है। वहीं आवागमन के साधन बढ़ने से दुर्घटनाएं भी हो जाती है भगोरिया हाट बाजारों में भारी भीड़ का प्रबंधन करना भी मुश्किल होता है। ऐसे में जिला व पुलिस प्रशासन के लिए ये खासा परेड कराने वाला होता है। पुलिस को सतर्क व चौकन्ना रहना पडता है। भगोरिया हाट बाजारों में ताडी और शराब का सेवन अधिक होने से भी घटनाऐं हो जाती है।

इस साल भगोरिया मेलों की शुरूआत 7 मार्च से होगी

  • 7, मार्च, शुक्रवार को वालपुर, कठिवाडा, उदयगढ, भगौर, बेकल्दा, मांडली और चैनपुरा।
  • 8, मार्च, शनिवार को भगौरिया हाट नानपुर, उमराली, राणापुर, मेघनगर, बामनिया, झकनावदा और बलेडी।
  • 9, मार्च, रविवार को भगौरिया हाट बाजार छकतला, कुलवट, सोरवा, आमखूंट, झाबुआ, झिरन, ढोलियावाड, रायपुरिया, काकनवानी, कनवाडा।
  • 10, मार्च, सोमवार को भगौरिया हाट बाजार आलिराजपुर, भाभरा, पेटलावद, बडा गुडा, रंभापुर, मोहनकोट, कुंदनपुर, रजला।
  • 11, मार्च, मंगलवार को भगौरिया हाट बजार बखतगढ, आंबुआ, अंधारवाड, पिटोल, खरडू बडी, थांदला, तारखेडी और बरवेट।
  • 12, मार्च, बुधवार को भगौरिया हाट बाजार बरझर, खट्ाली, चांदपुर, बोरी, उमरकोट, माछलिया, करवड, बोडायता, कल्याणपुरा, मदारानी और ढेकल।
  • 13, मार्च, गुरूवार को अंतिम भगौरिया हाट बाजार फुलमाल, सोंडवा, जोबट, पारा, हरीनगर, सांरगी, समोई और चैनुपरा।

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