नारी सम्मान के प्रणपाल क्रांतिधर्मी चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर विशेष


शिवकुमार शर्मा


अमर क्रांतिवीर, अजेय सेनानी, शक्ति और शौर्य के साधक शहीद चंद्रशेखर 'आजाद' राष्ट्रवाद, स्वतंत्रता, स्वाभिमान, अदम्य साहस, वीरता, नारी का सम्मान, स्त्री गरिमा की रक्षा और न्यायप्रियता के आदर्शों के पर्याय होकर उच्च मानवीय मूल्यों के वाहक थे। उनके ह्रदयतल में मानवीय संवेदना की अविरल धारा प्रवाहमान रहती थी। उसूलों और सिद्धांतों के साथ समझौता, बहन-बेटियों का अपमान उन्हें किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं था।


इस महान देशभक्त ने पं. सीताराम तिवारी की अंतिम संतान के रूप में माता श्रीमती जगरानी देवी की कोख से 23 जुलाई 1906 को अलीराजपुर तहसील के ग्राम भाभरा में जन्म लिया। प्रखर बुद्धि के धनी बालक चंद्रशेखर के मन में काशी जाकर अध्ययन करने का निश्चय हो गया। अनुमति मिलने पर बिना बताए घर से चले गए। काशी में रहकर अनेक क्रांतिकारियों से भेंट हुई। अंग्रेज सरकार के क्रूर दमन चक्र, अमानवीय व्यवहार, जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसी क्रूरता की हदें पार करने वाली घटनाओं को देखकर किशोर चंद्रशेखर का खून खोलने लगता था।


किशोरावस्था में ही वे भारत के गुलामी को खत्म करने पर चिंतन करने लगे। राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान पुलिस के अधिकारी को पत्थर मार कर लहूलुहान कर दिया। न्यायालय में खुद का नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्र' तथा  जेलखाने को घर बताया। न्यायाधीश ने झल्लाकर 15 बेंतों की सजा सुनाई, परंतु वे इस दंड से डिगे नहीं वरन् मातृभूमि की सेवा का दरवाजा खोल दिया। 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' से जुड़े। आंदोलन के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक मत होकर संगठन के सदस्यों ने ऐसे पूंजीपतियों के घर डाका डालने की योजना बनाई जो समाज के गरीब और निर्बल लोगों को तंग कर अमानवीय तरीके से लूट कर अपना घर भरते थे।


एक गांव में डाका डालते समय भीड़ से घिर जाने पर पिस्टल से भीड़ को नियंत्रित किया परंतु पं. राम प्रसाद बिस्मिल के निर्देश थे कि औरतों को कोई हाथ नहीं लगाएगा चाहे वे आक्रमण ही क्यों कर दें। उनका यह मानना था कि जो क्रांतिकारी स्त्रियों का सम्मान नहीं कर सकता वह क्रांति के पवित्र उद्देश्य में कभी सफल नहीं हो सकता। महिलाओं ने उन पर आक्रमण कर पिस्तौल छीन ली और लूट से भी रोक दिया, फल स्वरूप उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा।


एक पहचान के आदमी की सलाह पर गरीबों का खून चूस कर धन इकट्ठा करने वाले पास के गांव के सेठ के यहां डाका  डालने गए।सभी लूट में व्यस्त थे तभी आजाद ने देखा कि इस घर की एक सुंदर युवती को उनका साथी छेड़ रहा था, वह भयभीत होकर कांप रही थी। आजाद का खून खौल उठा। उज्ज्वल चरित्र के धनी, अखंड बाल ब्रह्मचारी आजाद ने नारी के अपमान की घटना को बर्दाश्त नहीं किया और तुरंत उस दुश्चरित्र साथी को गोली मारकर मौत के हवाले कर दिया। युवती से क्षमा मांगी तथा बिना एक पैसा लिए वापस लौट गए।


फरारी के समय बुंदेलखंड मोटर कंपनी के ड्राइवर रामानंद ने आजाद को अपने मोहल्ले में एक कोठरी किराए पर दिलवा दी थी। पड़ोस में रामदयाल नाम का एक ड्राइवर रहता था। वह शाम को शराब पीकर घर पहुंचता था तो पत्नी को बहुत मारता था। मोहल्ले वालों को बुरा लगता था परंतु घरेलू मामलों में दखल कौन दे? एक दिन आजाद से रामदयाल की भेंट हुई तो रामदयाल ने कहा हरिशंकर जी आप रात को ठोका पीटी बहुत किया करते हो इससे नींद हराम हो जाती है। इस बात पर उन्होंने कहा रामदयाल भाई मैं तो कल पुर्जों की ही ठोका पीटी करता हूं पर तुम तो शराब के नशे में अपनी गऊ जैसी पत्नी की ठोका पीटी करके मोहल्ले भर की नींद हराम करते रहते हो। इस बात पर रामदयाल आगबबूला हो बोले तू कौन होता है? मैं रोज मारूंगा, अभी मरता हूं देखता हूं कौन साला बचाता है? आजाद ने यह उत्तर दिया कि तुमने मुझे साला कहा है तो मैं तुम्हारी पत्नी का भाई हूं। एक भाई अपनी बहन को पिटते कैसे देख सकता हैतुमने शराब के नशे में रात को मारा तो ठीक नहीं होगा। 


रामदयाल का गुस्सा आसमान पर वह आवेश में आकर घर में घुसा और पत्नी की चोटी पकड़कर घसीटते हुए लाया मारने को हाथ उठाया, आजाद ने उसका हाथ थाम लिया। झटका देकर उसे अपनी ओर खींचा झटके से उसके हाथ से पत्नी के बाल छूट गए और वह मुक्त हो गई।आजाद ने भरपूर हाथ से गाल पर एक तमाचा दे मारा। रामदयाल इस मार को सह नहीं सका और सिर थाम कर नीचे बैठ गया। आसपास के लोगों ने बीच बचाव कराया। इस घटना के बाद आजाद और रामदयाल की बोलचाल बंद तो रही परंतु आजाद ने ही अपने संबंध सुधार लिए ।वे उसे जीजाजी कह कर पुकारने लगे। रामदयाल ने अपनी पत्नी को फिर कभी नहीं पीटा।


आजाद को काकोरी ट्रेन डकैती के कारण भूमिगत होना पड़ा। झांसी में मास्टर रुद्र नारायण के घर छोटे भाई के रूप में शरण ली, रहे भी। कुछ समय बाद ओरछा और झांसी के बीच में सातार नदी के किनारे छोटे से गांव टिमरपुर में गांव से बाहर नदी के किनारे एक छोटी कुटिया बनाकर रहने लगे। उन्होंने अपना नाम हरीशंकर ब्रह्मचारी रखा हुआ था वे मधुकरी मांग कर खाते थे और गांव वालों को रामायण सुनाया करते थे। इस दौरान उन्हें अपने चरित्र की अग्नि- परीक्षा भी देना पड़ी। गांव की एक सुंदर युवती हरिशंकर ब्रह्मचारी के मजबूत सुंदर शरीर को देखकर उन पर रीझ गई, परंतु हरिशंकर ब्रह्मचारी का ईमान नहीं डोला। वह अपने संकल्प पर दृढ़ रहे और अपनी अग्नि परीक्षा में खरे उतरे। गांव के नंबरदार इस कांड को अच्छी तरह जानते थे, वे हरिशंकर ब्रह्मचारी की इंद्रियों पर नियंत्रण और संकल्प शक्ति पर मुग्ध हो गए। 


उन्होंने आजाद पर बेधड़क विश्वास किया। भाई बनकर घर पर रहे। जंगल में बंदूक चलाने का अभ्यास किया। क्रांति के साधक आजाद महिलाओं के सम्मान के प्रबल पक्षधर थे। उनकी इस चारित्रिक विशेषता के कारण अपने दल में महिलाओं को सम्मानजनक स्थान दिया। सुशीला दीदी, बहन प्रेमवती, प्रकाशवाती तथा दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई। उनके चारित्रिक वैभव की धरोहर युवा वर्ग के लिए सदा प्रेरणादायी बनी रहेगी।देशभक्त पंडित जी को गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेज सरकार ने क्या-क्या नहीं किया परंतु उसे सफलता नहीं मिली। 27 फरवरी 1931 को दगाबाज आस्तीन के सांप ने पुलिस को आजाद के इलाहाबाद में प्रवास एवं अल्फ्रेड पार्क में जाने की सूचना दे दी। इस धोखेबाजी का शिकार हुए परमवीर ने पुलिस मुठभेड़ का सामना किया।अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए शेष बची आखिरी गोली से योगी की भांति स्वयं अपने प्राण भारत मां की सेवा में अर्पित करते हुए अनन्त यात्रा को प्रस्थान कर गए। उन्हें कोटि-कोटि नमन।

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