शहिद चन्द्रशेखर आजाद के शहादत दिवस पर उन्हे भावभीनी श्रद्धांजलि

                                          

प्रसिद्ध क्रांतिविर स्वंतत्रता संग्राम सेनानी चन्द्रशेखर आजाद का जन्म आलिराजपुर जिले के भाभरा में 23 जुलाई 1909 को हुआ था। तथा इनकी शहादत 27 फरवरी 1934 को इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए स्वंय के द्वारा गोली मार लेने से हुई थी।

चन्द्रशेखर आजाद आलिराजुपर की माटी में जन्मे और यहां पले-बढे तथा 15 साल की आयु में देश प्रेम के जज्बा में इन्होंने अपने जीवन को देष सेवा के लिये समर्पित कर दिया और पहली बार पकडे जाने पर आजाद को 15 बेतों कीसजा मिली जिसे आजाद ने हंसते-हंसते बेतें खाकर ली। आजाद जन्म से आजाद रहे और अपनी अंतिम सांस तक आजाद रहे।

चन्द्रशेखर आजाद की जन्म स्थली भाभरा आजादी के 75 साल बाद भी आज पूरी तरह से विकास की बाट देख रहा है। आजाद की शहादत तिथी हो या जन्म तिथि आजाद के नाम पर जिला प्रशासन, राज्य शासन या केंद्रीय शासन स्तर से कोई बडे आयेाजन नहीं किये जाते है। स्थानिय लोगों के द्वारा जरूर आजाद के शहादत दिवस पर भाभरा में हर साल श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया जाता आ रहा है। आज आजाद के नाम पर राजनैतिक रोटियां तो बहुतेरे लोग सेकते है लेकिन आजाद के नगर और जिले के लिये कुछ करना नही चाहते है।

प्रदेश सरकारों ने यह घोषणा की थी कि हर साल 23 जुलाय और 27 फरवरी को आजाद के ग्रह ग्राम भाभरा जोकि अब चन्द्रशेखर आजाद नगर है में हर साल आजाद की याद मेें मेेले लगाये जायेगें। भाभरा मेें आजाद उघान बनाया जायेगा और आजाद नगर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसीत किया जायेगा। लेकिन यह सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित रहा है।

आज उत्तर प्रदेश बदरका में आजाद के नाम पर उनके वहां जन्म लेने का दावा किया जाता है। बदरका में बडे स्तर पर आजाद के लिये आयोजन किये जाते है वहीं मध्य प्रदेष के आदिवासी बाहुल्य आलिराजपुर जिले में आजाद के गृह ग्राम में कोई आयोजन नहीं होना अपने आप मेें लज्जा जनक स्थिति पैदा करता है। लेकिन आज भी भाभरा वासी और क्षेत्र के हजारों हजार आदिवासी आजाद को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिये बडी संख्या मेें भाभरा पहूंचते है। जनपद पंचायत स्तर पर और नगर परिषद स्तर पर कार्यक्रम का आयेाजन किया जाता है। जिसमें जिले के अधिकारी और कभी कभी प्रदेश के मंत्री मौजूद हो तो श्रद्धांजलि देने पहूंच जाते है।

झाबुआ जिला मुख्यालय पर भी आजाद को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। पूर्व में यहां पर स्व. सुभाष सिंह राठौर के द्वारा मशाल जुलूस का आयोजन किया जाता रहा। लेकिन उनके निधन के बाद यह पंरम्परा भी बंद हो गई। आज आजाद के नाम पर मषाल उठाने के लिये लोगों को ढूंढना पडता है।

देश को आजादी दिलाने वाले सच्चे सपूतों के प्रति आखिर आज की पिढि को क्या ऐसा हो गया है कि वे सब कुछ करने से कतराने लगे है। आज कुछ एक संस्थाएं भर आजाद के नाम पर श्रद्धांजलि सभाओं का आयेाजन कर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर रहे है।

आज फिर से आवश्यकता है देश को आजाद जैसे क्रांतिवीरों की जोकि देश की युवा पिढि को सही रास्ता दिखा सकें। और लेागों को यह सोचने को मजबूर कर सके की हम किधर जा रहे है।
Previous Post Next Post