बुजुर्गो के लिए इस हाट में नशे का सुरूर और मांदल की थाप ही काफी है। भीलांचल में मनाए जाने वाले भगोरिया में वह सब होता है, जिसके लिये आदिवासी संस्कृति पहचानी जाती है। प्रणय निवेदन, नशे का सुरूर, मांदल की थाप पर नाचती टोलियां, रंग-बिरंगे परिधान पहने युवक-युवतियां, झूले, चकरी में आनंद लेते ग्रामीण, तीर कमान एवं फालिया के साथ बांसुरी की सुर लहरिया गूंजाते छैल छबिले। भगोरिया हाट पुरानी प्रथाओं पर आधारित हैं तथा भीलों के देवता भगोर देव के नाम पर यह पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि भगोर गोत्रिय भीलों द्वारा आरंभ किये जाने के कारण यह भगोरिया के रूप में चर्चा में आया। एक आम मान्यता यह भी है कि भीलों द्वारा पूजे जाने वाले शिव-पार्वती का एक नाम भग एवं गोरी भी है। जिसके कारण ही इस पर्व को भगौरिया नाम मिला है।
इसी के आधार पर यह आंकलन किया जाता है कि भगोरिया हाट का नामकरण पूर्व से प्रचलित इन्ही में से किसी मान्यताओं के आधार पर किया गया है। लेकिन इतिहास चाहे जो हो पर वर्तमान में भगोरिया एवं आदिवासी परिवारों के उत्साह को मनाने का पर्व बन गया है। वैसे भी वर्तमान समाज में जिस तरह के प्रयोग हो रहे है, आदिवासी परिवार उन प्रयोगों को पूर्व से ही करता रहा हे। जिस तरह के स्वंयवर होने की कथाएं हिन्दू शास्त्रों मेें वर्णित है,वैसी ही पहल भगोरिया पर्व में देखने को मिलती है। भग एवं गोरी के प्रणय को उत्साह के साथ मनाने की मान्यता के चलते आदिवासी युवक-युवति भगोरिया हाट में अपने जीवन साथी की तलाश करते है। मुख्य रूप से नयी फसल आने पर उसकी खुशियों को नाच-गाकर मनाने की परम्परा भी इससे जुडी है। इन्ही खुशियों में जब दूसरी खुशियां मिलती है तो भगोरिया की रंगत आ जाती है।
प्रणय निवेदन से हटकर इन हाट बाजारों में गीत संगीत के साथ मांदल, ढोल एवं बांसुरी की मधुर स्वर लहरियां सुनने को मिलती है और मधुर लोक गीत गूंजने लगते है। भगोरिया हाट के एक सप्ताह पूर्व जो हाट लगते है उन्हें तैहवारिया का नाम दिया जाता है। इन हाट बाजारों मेें आदिवासी परिवार आकर भगोरिया हाट के लिए सामग्री खरीदने का काम करते है। मूल रूप से संजने-संवरने एवं आनंद को महसूस करने के लिए मनाए जाने वाले भगौरिया हाट के लिए ज्यादातर वस्त्र एवं श्रृंगार सामग्री खरीदी जाती हे। उत्साह का यह आलम होता है कि नशे में पुरूषों के साथ महिलाऐं भी कंधे से कन्धा मिलाकर मांदल की थाप पर थिरकती दिखती हे। हााट के दौरान बडे बुजुर्ग जहां आपस मेें गुलाल लगाकर गले मिलते है,वहीं युवा अपनी गुलाल का उपयोग जीवन साथी को चुनने में करते है। हाट के दिनों में नृतक दल के रूप में युवक एवं युवतियों की टोलियां गेहर बनाकर आमने सामने होती है। अपनी प्रस्तुति ही जीवन साथी का चयन आधार होते है।
हाट में यदि किसी युवक की युवति पंसद आ जाये तो वह गाल पर गुलाल लगाकर प्रणय निवेदन करता है। इसके जवाब में अगर युवति भी गुलाल लगाती है तो माना जाता है कि वह भी जीवन साथी बनने की इच्छुक है। वहीं यदि युवती गुलाल पोंछ देती है तो यह निवेदन अस्वीकार माना जाता है और युवक अन्य युवती की तलाश में निकल जाता है। वर्तमान में इस परंपरा में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। अब गुलाल की जगह पान खाने एवं खिलाने का निवेदन और उसकी स्वीकृति भविष्य को तय करती है। एक अन्य बात जो इस परंपरा को रोचक बनाती है वह है युवक युवति की स्वीकृति के बाद दोनों का भाग जाना। इसके बाद दोनों के परिवार बैठकर आपस में समझौता करते है और वर पक्ष की तरफ से वधू पक्ष को दी जाने वाली राषि का निर्धारण होता है। इस राशि के चुकाये जाने के बाद ही भागे युवक-युवति वापस घरको लौटते है। इस प्रक्रिया के बाद सामाजिक आयोजन कर इस प्रस्ताव को सामाजिक मान्यता प्रदान की जाती है।
वर एवं वधू पक्ष के बीच समझोता कराने में मुख्य भूमिका भाजगडिये की होती है। ये वो व्यक्ति होता है जो दोनों पक्षों के बीच सुलह कराता है, यह सुलह इतनी आसान भी नहीं होती जितनी दिखती है। कई बार इन्ही कारणों से परिवारों के बीच आपसी मतभेद एवं आपसी रंजिष भी बढ जाती है और उसका अंजाम हत्या एवं आगजनी तक पहुंच जाता है। भगोरिया हाट के दौरान एक ही गांव की युवतियां एवं युवक एक जैसे कपडों में हाट में पहुंचते है। कपडों को ये समानता फलियों के आधार पर होती है। झाबुआ जिले में जिस तरह की भौगोलिक स्थिति है वहां पर पहाडों की चोटियां पर परिवार बस्ते है। अलग अलग समूह में बसे ये परिवार ही फलिये का आधार होते है।
इस साल भगौरिया हाट बाजार 1 मार्च से 7 मार्च तक भरेगें। झाबुआ और आलिराजपुर जिलों के साथ ही धार, बडवानी, पश्चिम निमाड के जिलों में भरेगें। जिन्हे देखने के लिये बडी संख्या में बहारी लोग बडी संख्या में इन जिलों में पहूंचते है। वर्तमान समय में भगोरिया हाट बाजारों को निमाड क्षेत्र में भोग्र्या के नाम से भी जाना जाता है। शिक्षित समाज के युवा अब आदिवासी संस्कृति के पुराने रिति रिवाजों को भी नकारते है और वे प्राचिन पंरम्पराओं और उनके बारे में प्रचलित बातों को मानने से भी इंकार करते है। जबकि वास्तीवक रूप में आज भी कई भगोरिया हाट बाजारों में ये दृष्य दिखाई पड जाते है। भगौरिया हाट बाजारों में बडी संख्या में आदिवासी जन पहूंचते है जिसके कारण सुरक्षा की व्यवस्थाऐं भी बडे पैमाने पर की जाती है इन भगौरिया हाट बाजारों का राजनैतिक भी बहुत महत्व होता है। जिसके चलते भगौरिया हाट बाजारों में राजनैतिक पार्टीयां भी अपना दमखम दिखाती है। कुल मिलाकर भगोरिया आंनद, मस्ती, उल्लास एवं उमंग का पर्व है।