संपादक दिलीप सिंह वर्मा
झाबुआ। फाल्गुन के माह में जब बंसत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है, आम के वृक्षों पर आम्रकुंज खिल उठते है। छोटे-छोटे गुंगडे, केरी लगने लगती है, पलाश पर केसरिया फूल खिल उठते है, महुआ के वृक्षों पर खिले महुआ फूल से मदमाती गंध से क्षेत्र आच्छादित रहता हे ऐसे मेें ताड के वृक्षों से निकलने वाला रसताडी आदिवासीयों को नशे में मदमस्त कर देता है, खेतों में गेहूं व चने की फसले पककर लहलहा रही होती है, मंद-मंद पवन के झोकों मेें आदिवासी बालाओं का यौवन इठलाकर आच्छादित कर देता है, हर किसी के चेहरे पर प्रसन्नता की झलक दिखाई देने लगती है। ऐसे ही क्षणों में मनाया जाता है आदिवासीयों का पर्व भगौरिया। होली के एक सप्ताह पूर्व भरने वाले जिले के हाट बाजारों को भगौरिया हाट कहां जाता है। भगौरिया हाट बाजारों के लिएआदिवासी साल भर इंतजार करते है, परंपराओं एवं मान्यताओं के अनुसार भगौरिया हाट में आदिवासी अवश्य पहुंचकर हिस्सा लेते है, चाहे फिर वे अपने गांव से कितनी दूर ही काम की तलाष में क्यों नही गए हो, वे अपने घरों की ओर एक सप्ताह पूर्व ही लौटना प्रारंभ कर देते है।
भगौरिया हाटों में जाने लिए नवयुवतियां जहां रूप का श्रृंगार कर संवरने मेें जुट जाती है, वहीं आदिवासी नवयुवक ढोल व मांदल को कसने लगते है, आदिवासी युवक बांसुरी की मधुर टैर धुन छेडता है, घुंघरूओं की गुंज वातावरण को मनमोहक बना देती है। जिले में भगौरिया से पहले भरने वाल हाट बाजार को शिवरात्रियां व गुलालिया हाट कहते है। जबकि भगौरिया के बाद भरने वाले हाट बाजारों को उजाडिया हाट कहां जाता है। भगौरिया हाट आदिवासी सांस्कृतिक पंरम्परा को लिए हुए होते है, इन बाजारों, मेलों में झूले-चकरियों मेें झुलने का आंनद लोग लेते है, वहीं रंग-बिरंगे षरबतों व पान-मसालों की दुकानों के साथ ही कई प्रकार की खाने-पीने की दुकाने सजती है,मेले में आदिवासी युवाओं-युवतियों की टोलियां ढोल-मांदल की थाप पर पारंम्परिक पहनावे के साथ आती है, इस दिन बूढे भी जवानी की याद ताजा करसे नहीं चूकते है।
कहा जाता है कि भगौरिया में भागने व भगाने की पंरपरा के चलते भी इसे भगौरिया कहते है। युवक-युवतियां एक दूसरे को पंसद करने पर एक दूसरे पर पान की पीक कपडों पर थूंक कर प्रेम निवेदन करते हैं तो कई युवक-युवतियां हाट बाजार से ही भाग कर विवाह कर लेते है,इसी कारण से इसे आदिवासीयों का प्रणय पर्व भगौरिया कहा जाता है। भगौरिया मेले देश-प्रदेश तथा विदेशों में भी प्रसिद्ध है, इन मेलों को देखने का आंनद लेने के लिये बडी संख्या में बहारी विदेशी पर्यटक भी यहां आते है। भगौरिया हाट बाजार जहां प्रेम पर्व के लिये ख्यात है, वहीं इस दिन आदिवासी गुटों में खून-खच्चर भी हो जाते है,आदिवासी पंरपराओं के रूप में अगर दो बेरी समूह भगौरिया हाट बाजार में आमने-सामने हो जाते है तो वे जान के दुष्मन बन जाते हे।
कई मर्तबा इन भगौरियों में हादसे हो जाते है। भगौरिया हाट बाजारों को लेकर इस कारण से पुलिस को माकूल सुरक्षा के इंतजाम भी करना पडते है। भगौरिया हाट बाजारों में अब पाष्चात संस्कृति की झलक भी दिखाई पडने लगी है,आदिवासी युवतियां साडियां पहनकर होठों पर लाली लगाकर आने लगी है तो आदिवासी युवक पेंट, शर्ट, चश्मा, गले में रूमाल और टेपरिकार्डर व मोबाईल फोन भगौरिया मेलों में लेकर साथ आते है। प्रदेश सरकार द्वारा भगौरिया हाटो के विशेष महत्व व सांस्कृतिक पहचान देने के निर्णय से भगौरिया हाट बाजारों के लिये विशेष इंतजाम किए जाने लगे है।
झाबुआ और आलिराजपुर जिले में इस साल 1 मार्च से 7 मार्च के बिच भगौरिया हाट बाजार भरेगें। दोनों जिलों में 50 से अधिक स्थानों पर भगौरिया मेले लगेगें। झाबुआ जिले में झाबुआ, पारा, रानापुर, कालिदेवी, मेघनगर का भगौरिया तो आलिराजपुर जिले में आलिराजपुर, चांदपुर, छकतला, वालपुर, कठिवाडा, बखतगढ के भगौरिया प्रसिद्ध है। प्रदेश के धार एवं निमाड जिलों में भी भगौरिया पर्व मनाया जाता है जहां पर इसे कहीं-कहीं भोंगरिया के नाम से पुकारा जाता है। आज के पढे लिये लोग आदिवासी प्राचिन पंरम्पराओं को झूठलाते है और उसे मानने से इंकार करते है जबकि आज भी उनकी ये परंम्पराऐं भगौरिया मेलों में देखने को मिलती है, धीरे-धीरे भगाौरिया मेलों पर पाश्चात् संस्कृति हावी होने से तथा ज्यादा पुलिस इंतजाम होने के चलते भगौरिया की रंगत अब कमजोर पडने लगी है।
मंहगाई के चलते जहां पहले आदिवासी सुदूर काम की तलाश से अपने गांव भगोरिया पर वापस लौटने लगते थे लेकिन अब भगौरिया के ऐन वक्त पर वे काम की तलाश में जिले से पलायन कर रहे है ऐसे में भगौरिया पर्व को लेकर उत्साह की कमी दिखलाई पडने लगी है। भगौरिया मेलों का राजनैतिक पार्टीयां भी जमकर लाभ उठाती है जिसके तहत वे इन हाट बाजारों में अपना अपना शक्ति प्रदर्शन गैर निकाल कर करती है। 1 मार्च 2023 से 7 मार्च 2023 तक आदिवासी अंचलों में भगौरिया पर्व की धूम रहेगी। भगौरिया मेलों को लेकर अंचल में सुगबुगाहट प्रारंभ हो गई है।