झाबुआ, आलिराजपुर, धार, रतलाम, बडवानी आदि जिलों में आदिवासी संगठन जयस का तेजी से प्रभाव फैलता जा रहा है। जिसके चलते हर आंदोलन में,सामाजिक कार्यो में, धार्मिक कार्यो में या फिर सामजिक कार्यो में जयस संगठन की भूमिका बढती जा रही है। वैसे तो माना जाता है कि जयस कांग्रेस का सहयोगी संगठन है लेकिन इस बार वो ताल ठोक कर मैदान मेें उतरने की तैयारी कर रहा है ऐसे में अगर जयस अकेले अपने दम पर चुनाव लडेगा तो फिर कांग्रेस के लिये खतरा बनेगा और कांग्रेस के वोट काटेगा जिसका सिधा फायदा भाजपा को मिल सकता है वहीं अगर कांग्रेस और जयस मिल कर चुनाव लड़ेंगे तो फिर भाजपा का इन आदिवासी सिटों पर एक फिर से वापसी करना मुश्किल हो जायेगा। क्योंकि पिछले विधानसभा सीटों पर जयस ने कांग्रेस का साथ दिया था और जयस के नेता हिरालाल अलावा को कांग्रेस ने मनावर से टिकट देकर कांग्रेस से चुनाव लडवाया था लेकिन इस बार जयस ज्यादा सिटों की मांग कर रही है। एसे में अगर कांग्रसे व जयस का गठबंधन नहीं होता है तो फिर जयस अकेले चुनाव लडेगी।
वहीं प्रदेश के पिछडा वर्ग के लोग भी अब अलग से अपनी ताकत दिखाने के मूड में दिखाई दे रहे है जिसके चलते पिछले दिनों भोपाल में चन्द्रशेखर रावण के नेतृत्व में गर्जना रेली में बडी संख्या में अपनी ताकत दिखाई है। अगर इन सभी पहूलों पर समय रहते सत्तारूढ दल भाजपा ने अपनी तैयारियां नहीं की तो फिर उसे एक बार फिर से आदिवासी क्षेत्रों में मुंह की खाना पडेगी।
विधानसभा सिटों पर नजर डाले तो आलिराजपुर मेें कांग्रेस का कब्जा है जबकि जोबट में उपचुनाव के बाद कांग्रेस से आई सुलोचना रावत ने जीत दर्ज कर भाजपा को यहां से विजय दिलाई थी लेकिन पिछले दिनों उनके बिमार होने से इस सिट पर भाजपा के लिये एक बार फिर से मुश्किलें बढ़ गई है। झाबुआ, पेटलावद और थांदला सिटों पर कांग्रेस का कब्जा है। वहीं रतलाम की सैलाना सीट पर भी कांग्रेस का कब्जा है। धार जिले की बदनावर और धार सिट को छोड दे तो गंधवानी, सरदारपुर, मनावर, कुक्षी, धरमपुरी सिटों पर कांग्रेस कब्जा है। इन सिटों पर कांग्रेस की पकड मजबूत है और वो यहां पर एक बार फिर से अपना परफामेंस दोहराने को तैयार है। ऐसे में जयस फेक्टर का रोल महत्वपूर्ण हो जाता है। रतलाम ग्रामीण सिट जोकि भाजपा के पास है लेकिन वर्तमान में इस सिट पर भी जयस काफी सक्रिय है ऐसे में भाजपा को इस बार यहां से भी चुनौती मिलेगी।
राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस जयस संगठन को अपने साथ रखने की पूरी कोशिश मेें है और इसके लिये वो उसे इस बार अधिक सिटे भी दे सकती है कांग्रेस किसी भी तरह भाजपा को सत्ता से दूर रखने की पूरी कोशिश करेगी। ऐसे में भाजपा ने अंतिम समय तक अगर आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश नहीं की तो एक बार फिर से सत्ता का गणित उसके हाथ से फिसल सकता है। जो पूर्व चुनाव रूझान आ रहे है उसमें कांग्रेस -भाजपा से आगे दिखाई दे रही है ऐसे मेें पिछले विधानसभा चुनाव का रिजल्ट अगर आता है तो फिर एक बार मध्य प्रदेश मेें सरकार बनाने को लेकर पेंच फंस सकता है।
इस बार के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी भी पूरी तैयारी से उतरने का ऐलान कर चुकी है लेकिन अभी उसकी जडे मध्य प्रदेश में जमी हुई नहीं है इसलिये उसका ज्यादा फर्क यहां नहीं पडेगा। लेकिन अगड़े तबके के लोग जिनमें ब्राम्हण, राजपूत आदि है वो भी इस बार भाजपा के विरुद्ध जा सकते है। ऐसे में भाजपा को मध्य प्रदेश मेें अपने तीसरे कार्यकाल के अपने विरोधी प्रचार को दबाना मुश्किल होगा।